66. सूरह अत-तहरिम Surah At-Tahrim
﴾ 1 ﴿ हे नबी! क्यों ह़राम (अवैध) करते हैं आप उसे, जिसे ह़लाल (वैध) किया है अल्लाह ने आपके लिए? आप अपनी पत्नियों की प्रसन्नता[1] चाहते हैं? तथा अल्लाह अति क्षमी, दयावान् है।
1. ह़दीस में है कि आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) अस्र की नमाज़ के पश्चात् अपनी सब पत्नियों के यहाँ कुछ देर के लिये जाया करते थे। एक बार कई दिन अपनी पत्नी ज़ैनब (रज़ियल्लाहु अन्हा) के यहाँ अधिक देर तक रह गये। कारण यह था कि वह आप को मधु पिलाती थीं। आप की पत्नी आइशा तथा ह़फ़्सा (रज़ियल्लाहु अन्हुमा) ने योजना बनाई कि जब आप आयें तो जिस के पास जायें वह यह कहे कि आप के मुँह से मग़ाफ़ीर (एक दुर्गन्धित फूल) की गन्ध आ रही है। और उन्होंने यही किया। जिस पर आप ने शपथ ले ली कि अब मधु नहीं पिऊँगा। उसी पर यह आयत उतरी। (बुख़ारीः 4912) इस में यह संकेत भी है कि नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) को भी किसी ह़लाल को ह़राम करने अथवा ह़राम को ह़लाल करने का कोई अधिकार नहीं था।
﴾ 2 ﴿ नियम बना दिया है अल्लाह ने तुम्हारे लिए तुम्हारी शपथों से निकलने[1] का तथा अल्लाह संरक्षक है तुम्हारा और वही सर्वज्ञानी गुणी है।
1. अर्थात प्रयाश्चित दे कर उस को करने का जिस के न करने की शपथ ली हो। शपथ के प्रयाश्चित (कफ़्फ़ारा) के लिये देखियेः माइदा, आयतः81।
﴾ 3 ﴿ और जब नबी ने अपनी कुछ पत्नियों से एक[1] बात कही, तो उसने उसे बता दिया और अल्लाह ने उसे खोल दिया नबी पर, तो नबी ने कुछ से सूचित किया और कुछ को छोड़ दिया। फिर जब सूचित किया आपने पत्नि को उससे, तो उसने कहाः किसने सूचित किया आपको इस बात से? आपने कहाः मूझे सूचित किया है सब जानने और सबसे सूचित रहने वाले ने।
1. अर्थात मधु न पीने की बात।
﴾ 4 ﴿ यदि तुम[1] दोनों (हे नबी की पत्नियो!) क्षमा माँग लो अल्लाह से (तो तुम्हारे लिए उत्तम है), क्योंकि तुम दोनों के दिल कुछ झुक गये हैं और यदि तुम दोनों एक-दूसरे की सहायता करोगी आपके विरूध्द, तो निःसंदेह अल्लाह आपका सहायक है तथा जिब्रील और सदाचारी ईमान वाले और फ़रिश्ते (भी) इनके अतिरिक्त सहायक हैं।
1. दोनों से अभिप्राय, आदरणीय आइशा तथा आदरणीय ह़फ़्सा हैं।
﴾ 5 ﴿ कुछ दूर नहीं कि आपका पालनहार, यदि आप तलाक़ दे दें तुम सभी को, तो बदले में दे आपको पत्नियाँ तुमसे उत्तम, इस्लाम वालियाँ, इबादत करने वालियाँ, आज्ञा पालन करने वालियाँ, क्षमा माँगने वालियाँ, व्रत रखने वालियाँ, विधवायें तथा कुमारियाँ।
﴾ 6 ﴿ हे लोगो जो ईमान लाये हो! बचाओ[1] अपने आपको तथा अपने परिजनों को उस अग्नि से, जिसका ईंधन मनुष्य तथा पत्थर होंगे। जिसपर फ़रिश्ते नियुक्त हैं कड़े दिल, कड़े स्वभाव वाले। वे अवज्ञा नहीं करते अल्लाह के आदेश की तथा वही करते हैं, जिसका आदेश उन्हें दिया जाये।
1. अर्थात तुम्हारा कर्तव्य है कि अपने परिजनों को इस्लाम की शिक्षा दो ताकि वह इस्लामी जीवन व्यतीत करें। और नरक का ईंधन बनने से बच जायें। ह़दीस में है कि जब बच्चा सात वर्ष का हो जाये तो उसे नमाज़ पढ़ने का आदेश दो। और जब दस वर्ष का हो जाये तो उसे नमाज़ के लिये (यदि ज़रूरत पड़े तो) मारो। (तिर्मिज़ीः 407) पत्थर से अभिप्राय वह मूर्तियाँ हैं जिन्हें देवता और पूज्य बनाया गया था।
﴾ 7 ﴿ हे काफ़िरो! बहाना न बनाओ आज, तुम्हें उसी का बदला दिया जा रहा है, जो तुम करते रहे।
﴾ 8 ﴿ हे ईमान वालो! अल्लाह के आगे सच्ची[1] तौबा करो। संभव है कि तुम्हारा पालनहार दूर कर दे तुम्हारी बुराईयाँ तुमसे तथा प्रवेश करा दे तुम्हें ऐसे स्वर्गों में, बहती हैं जिनमें नहरें। जिस दिन वह अपमानित नहीं करेगा नबी को और न उन्हें, जो ईमान लाये हैं उनके साथ। उनका प्रकाश[2] दौड़ रहा होगा, उनके आगे तथा उनके दायें, वे प्रार्थना कर रहे होंगेः हे हमारे पालनहार! पूर्ण कर दे हमारे लिए हमारा प्रकाश तथा क्षमा कर दे हमें। वास्तव में, तू जो चाहे, कर सकता है।
1. सच्ची तौबा का अर्थ यह है कि पाप को त्याग दे। और उस पर लज्जित हो तथा भविष्य में पाप न करने का संकल्प ले। और यदि किसी का कुछ लिया है तो उसे भरे और अत्याचार किया है तो क्षमा माँग ले। 2. (देखियेः सूरह ह़दीद, आयतः12)।
﴾ 9 ﴿ हे नबी! आप जिहाद करें काफ़िरों और मुनाफ़िक़ों से और उनपर कड़ाई करें।[1] उनका स्थान नरक है और वह बुरा स्थान है।
1. अर्थात जो काफ़िर इस्लाम के प्रचार से रोकते हैं, और जो मुनाफ़िक़ उपद्रव फैलाते हैं उन से कड़ा संघर्ष करें।
﴾ 10 ﴿ अल्लाह ने उदाहरण दिया है उनके लिए, जो काफ़िर हो गये नूह़ की पत्नी तथा लूत की पत्नी का। जो दोनों विवाह में थीं दो भक्तों के, हमारे सदाचारी भक्तों में से। फिर दोनों ने विश्वासघात[1] किया उनसे। तो दोनों उनके, अल्लाह के यहाँ कुछ काम नहीं आये तथा (दोनों स्त्रियों से) कहा गया कि प्रवेश कर जाओ नरक में प्रवेश करने वालों के साथ।
1. विश्वासघात का अर्थ यह है कि आदरणीय नूह़ (अलैहिस्सलाम) की पत्नी ने ईमान तथा धर्म में उन का साथ नहीं दिया। आयत का भावार्थ यह है कि अल्लाह के यहाँ कर्म काम आयेगा। सम्बंध नहीं काम आयेंगे।
﴾ 11 ﴿ तथा उदाहरण[1] दिया है अल्लाह ने उनके लिए, जो ईमान लाये, फ़िरऔन की पत्नी का। जब उसने प्रार्थना कीः हे मेरे पालनहार! बना दे मेरे लिए अपने पास एक घर स्वर्ग में तथा मुझे मुक्त कर दे फ़िरऔन तथा उसके कर्म से और मुझे मुक्त कर दे अत्याचारी जाति से।
1. ह़दीस में है कि पुरुषों में से बहुत पूर्ण हुये। पर स्त्रियों में इमरान की पुत्री मर्यम और फ़िरऔन की पत्नी आसिया ही पूर्ण हूईं। और आइशा (रज़ियल्लाहु अन्हा) की प्रधानता नारियों पर वही है जो सरीद (एक प्रकार का खाना) की सब खानों पर है। (सह़ीह़ बुख़ारीः 3411, सह़ीह़ मुस्लिमः 2431)
﴾ 12 ﴿ तथा मर्यम, इमरान की पुत्री का, जिसने रक्षा की अपने सतीत्व की, तो फूँक दी हमने उसमें अपनी ओर से रूह़ (आत्मा) तथा उस (मर्यम) ने सच माना अपने पालनहार की बातों और उसकी पुस्तकों को और वह इबादत करने वालों में से थी।
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