30. सूरह अर-रूम Surah Ar-Rum


﴾ 1 ﴿ अलिफ, लाम, मीम।

﴾ 2 ﴿ पराजित हो गये रूमी।

﴾ 3 ﴿ समीप की धरती में और वे अपने पराजित होने के पश्चात् जल्द ही विजयी हो जायेंगे!

﴾ 4 ﴿ कुछ वर्षों में, अल्लाह ही का अधिकार है पहले (भी) और बाद में (भी) और उस दिन प्रसन्न होंगे ईमान वाले।

﴾ 5 ﴿ अल्लाह की सहायता से तथा वही अति प्रभुत्वशाली, दयावान् है।

﴾ 6 ﴿ ये अल्लाह का वचन है, नहीं विरुध्द करेगा अल्लाह अपने वचन[1] के और परन्तु अधिक्तर लोग ज्ञान नहीं रखते।
1. इन आयतों के अन्दर दो भविष्वाणियाँ की गई हैं। जो क़ुर्आन शरीफ़ तथा स्वयं नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के सत्य होने का ऐतिहासिक प्रमाण है। यह वह यूग था जब नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) और मक्का के क़ुरैश के बीच युध्द आरंभ हो गया था। रूम के राजा क़ैसर को उस समय, ईरान के राजा किस्रा ने पराजित कर दिया था। जिस से मक्का वासी प्रसन्न थे। क्यों कि वह अग्नि के पुजारी थे। और रूमी ईसाई अकाशीय धर्म के अनुयायी थे। और कह रहे थे कि हम मिश्रणवादी भी इसी प्रकार मुसलमानों को पराजित कर देंगे जिस प्रकार रूमियों को ईरानियों ने पराजय किया। इसी पर यह दो भविष्यवाणी की गई की रूमी कुछ वर्षों में फिर विजयी हो जायेंगे और यह भविष्यवाणी इस के साथ पूरी होगी कि मुसलमान भी उसी समय विजय हो कर प्रसन्न हो रहे होंगे। और ऐसा ही हुआ कि 9 वर्ष के भीतर रूमियों ने ईरानियों को पराजित कर दिया।

﴾ 7 ﴿ वे तो जानते हैं बस ऊपरी सांसारिक जीवन को तथा[1] वे परलोक से अचेत हैं।
1. अर्थात सुख-सुविधा और आन्नद को। और वह इस से अचेत हैं कि एक और जीवन भी है जिस में कर्मों के परिणाम सामने आयेंगे। बल्कि यही देखा जाता है कि कभी एक जाति उन्नति कर लेने के पश्चात् असफल हो जाती है।

﴾ 8 ﴿ क्या और उन्होंने अपने में सोच-विचार नहीं किया कि नहीं उत्पन्न किया है अल्लाह ने आकाशों तथा धरती को और जो कुछ उन[1] दोनों के बीच है, परन्तु सत्यानुसार और एक निश्चित अवधि के लिए? और बहुत-से लोग अपने पालनहार से मिलने का इन्कार करने वाले हैं।
1. विश्व की व्यवस्था बता रही है कि यह अकारण नहीं, बल्कि इस का कुछ अभिप्राय है।

﴾ 9 ﴿ क्या वे चले-फिरे नहीं धरती में, फिर देखते कि कैसा रहा उनका परिणाम, जो इनसे पहले थे? वे इनसे अधिक थे शक्ति में। उन्होंने जोता-बोया धरती को और उसे आबाद किया, उससे अधिक, जितना इन्होंने आबाद किया और आये उनके पास उनके रसूल खुली निशानियाँ (प्रमाण) लेकर। तो नहीं था अल्लाह कि उनपर अत्याचार करता और परन्तु वे स्वयं अपने ऊपर अत्याचार कर रहे थे।

﴾ 10 ﴿ फिर हो गया उनका बुरा अन्त, जिन्होंने बुराई की, इसलिए कि उन्होंने झूठ कहा अल्लाह की आयतों को और वे उनका उपहास कर रहे थे।

﴾ 11 ﴿ अल्लाह ही उत्पत्ति का आरंभ करता है, फिर उसे दुहरायेगा तथा उसी की ओर, तुम फेरे[1] जाओगे।
1. अर्थात प्रलय के दिन अपने संसारिक अच्छे-बुरे कामों का प्रतिकार पाने के लिये।

﴾ 12 ﴿ और जब स्थापित होगी प्रलय, तो निराश[1] हो जायेंगे अपराधी।
1. अर्थात अपनी मुक्ति से और चकित हो कर रह जोयेंगे।

﴾ 13 ﴿ और नहीं होगा उनके साझियों में उनका अभिस्तावक (सिफ़ारिशी) और वे अपने साझियों का इन्कार करने वाले[1] होंगे।
1. क्यों कि वह देख लेंगे कि उन्हें सिफ़ारिश करने का कोई अधिकार नहीं होगा। (देखियेः सूरह अन्आम, आयतः23)

﴾ 14 ﴿ और जिस दिन स्थापित होगी प्रलय, तो उस दिन सब अलग अलग हो जायेंगे।

﴾ 15 ﴿ तो जो ईमान लाये तथा सदाचार किये, वही स्वर्ग में प्रसन्न किये जायेंगे।

﴾ 16 ﴿ और जिन्होंने क्फ़्र किया और झुठलाया हमारी आयतों को और परलोक के मिलन को, तो वही यातना में उपस्थित किये हुए होंगे।

﴾ 17 ﴿ अतः, तुम अल्लाह की पवित्रता का वर्णन संध्या तथा सवेरे किया करो।

﴾ 18 ﴿ तथा उसी की प्रशंसा है आकाशों तथा धरती में तीसरे पहर तथा जब दो पहर हो।

﴾ 19 ﴿ वह निकालता है[1] जीवित से निर्जीव को तथा निकालता है निर्जीव से जीव को और जीवित कर देता है धरती को, उसके मरण (सूखने) के पश्चात् और इसी प्रकार, तुम (भी) निकाले जाओगे।
1. यहाँ से यह बताया जा रहा है कि प्रलय हो कर परलोक में सब को पुनः जीवित किया जाना संभव है और उस का प्रमाण दिया जा रहा है। इसी के साथ यह भी बताया जा रहा है कि इस विश्व का स्वामी और व्यवस्थापक अल्लाह ही है, अतः पूज्य भी केवल वही है।

﴾ 20 ﴿ और उसकी (शक्ति) के लक्षणों में से ये भी है कि तुम्हें उत्पन्न किया मिट्टी से, फिर अब तुम मनुष्य हो (कि धरती में) फैलते जा रहे हो।

﴾ 21 ﴿ तथा उसकी निशानियों (लक्षणें) में से ये (भी) है कि उत्पन्न किये, तुम्हारे लिए, तुम्हीं में से जोड़े, ताकि तुम शान्ति प्राप्त करो उनके पास तथा उत्पन्न कर दिया तुम्हारे बीच प्रेम तथा दया, वास्तव में, इसमें कई निशाननियाँ हैं उन लोगों के लिए, जो सोच-विचार करते हैं।

﴾ 22 ﴿ तथा उसकी निशानियों में से है, आकाशों तथा धरती को पैदा करना तथा तुम्हारी बोलियों और रंगों का विभिन्न होना। निश्चय इसमें कई निशानियाँ हैं, ज्ञानियों[1] के लिए।
1. क़ुर्आन ने यह कह कर कि भाषाओं और वर्ग-वर्ण का भेद अल्लाह की रचना की निशानियाँ हैं, उस भेद-भाव को सदा के लिये समाप्त कर दिया जो पक्षपात, आपसी बैर और वर्ग का आधार बनते हैं। और संसार की शान्ति का भेद करने का कारण होते हैं। (देखियेः सूरह ह़ुजुरात, आयतः13) यदि आज भी इस्लाम की इस शिक्षा को अपना लिया जाये तो संसार शान्ति का गहवारा बन सकता है।

﴾ 23 ﴿ तथा उसकी निशानियों में से है, तुम्हारा सोना रात्रि में तथा दिन में और तुम्हारा खोज करना उसकी अनुग्रह (जीविका) का। वास्तव में, इसमें कई निशानियाँ हैं, उन लोगों के लिए, जो सुनते हैं।

﴾ 24 ﴿ और उसकी निशानियों में से (ये भी) है कि वह दिखाता है तुम्हें बिजली को, भय तथा आशा बनाकर और उतारता है आकाश से जल, फिर जीवित करता है उसके द्वारा धरती को, उसके मरण के पश्चात्, वस्तुतः, इसमें कई निशानियाँ हैं, उन लोगों के लिए, जो सोचते हैं।

﴾ 25 ﴿ और उसकी निशानियों में से है कि स्थापित हैं आकाश तथा धरती उसके आदेश से। फिर जब तुम्हें पुकारेगा एक बार धरती से, तो सहसा तुम निकल पड़ोगे।

﴾ 26 ﴿ और उसी का है, जो आकाशों तथा धरती में है। सब उसी के अधीन हैं।

﴾ 27 ﴿ तथा वही है, जो आरंभ करता है उत्पत्ति का, फिर वह उसे दुहरायेगा और वह अति सरल है उसपर और उसी का सर्वोच्च गुण है आकाशों तथा धरती में और वही प्रभुत्वशाली, तत्वज्ञ है।

﴾ 28 ﴿ उसने एक उदाहरण दिया है स्वयं तुम्हाराः क्या तुम्हारे[1] दासों में से तुम्हारा कोई साझी है उसमें, जो जीविका प्रदान की है हमने तुम्हें, तो तुम उसमें उसके बराबर हो, उनसे डरते हो जैसे अपनों से डरते हो? इसी प्रकार, हम वर्णन करते हैं आयतों का, उन लोगों के लिए, जो समझ रखते हैं।
1. परलोक और एकेश्वरवाद के तर्कों का वर्णन करने के पश्चात् इस आयत में शुध्द एकेश्वरवाद के प्रमाण प्रस्तुत किये जा रहे हैं कि जब तुम स्वयं अपने दासों को अपनी जीविका में साझी नहीं बना सकते तो जिस अल्लाह ने सब को बनाया है उस की वंदना उपासना में दूसरों को कैसे साझी बनाते हो?

﴾ 29 ﴿ बल्कि चले हैं अत्याचारी अपनी मनमानी पर बिना समझे, तो कौन राह दिखाये उसे, जिसे अल्लाह ने कुपथ कर दिया हो? और नहीं है उनका कोई सहायक।

﴾ 30 ﴿ तो (हे नबी!) आप सीधा रखें अपना मुख इस धर्म की दिशा में, एक ओर होकर, उस स्वभाव पर, पैदा किया है अल्लाह ने मनुष्यों को जिस[1] पर। बदलना नहीं है अल्लाह के धर्म को, यही स्वभाविक धर्म है, किन्तु अधिक्तर लोग नहीं[2] जानते।
1. एक ह़दीस में कुछ इस प्रकार आया है कि प्रत्येक शिशु प्रकृति (नेचर, अर्थात इस्लाम) पर जन्म लेता है। परन्तु उस के माँ-बाप उसे यहूदी या ईसाई या मजूसी बना देते हैं। (देखिये सह़ीह़ मुस्लिमः 2656) और यदि उस के माता पिता हिन्दु अथवा बुध्द या और किछ हैं तो वे अपने सिशु को अपने धर्म के रंग में रंग देते हैं। आयत का भावार्थ यह है कि स्वभाविक धर्म इस्लाम और तौह़ीद को न बदलो बल्कि सह़ीह पालन-पोषण द्वारा अपने शिशु को इसी स्वभाविक धर्म इस्लाम की शिक्षा। 2. इसी लिये वह इस्लाम और तौह़ीद को नहीं पहचानते।

﴾ 31 ﴿ ध्यान करके अल्लाह की ओर और डरो उससे तथा स्थापना करो नमाज़ की और न हो जाओ मुश्रिकों में से।

﴾ 32 ﴿ उनमें से जिन्होंने अलग बना लिया अपना धर्म और हो गये कई गिरोह, प्रत्येक गिरोह उसीमें[1] जो उसके पास है, मगन है।
1. वह समझता है कि मैं ही सत्य पर हूँ और उन्हें तथ्य की कोई चिन्ता नहीं।

﴾ 33 ﴿ और जब पहुँचता है मनुष्यों को कोई दुःख, तो वह पुकारते हैं अपने पालनहार को ध्यान लगाकर उसकी ओर। फिर जब वह चखाता है उनको, अपनी ओर से कोई दया, तो सहसा एक गिरोह उनमें से अपने पालनहार के साथ शिर्क करने लगता है।

﴾ 34 ﴿ ताकि वे कृतघ्न हो जायें (उसके), जो हमने प्रदान किया है उन्हें। तो तुम आन्नद ले लो, तुम्हें शीघ्र ही ज्ञान हो जायेगा।

﴾ 35 ﴿ क्या हमने उतारा है उनपर कोई प्रमाण, जो वर्णन करता है उसका, जिसे वे अल्लाह का साझी बना[1] रहे हैं।
1. यह प्रश्न नकारात्मक है अर्थात उन के पास इस का कोई प्रमाण नहीं है।

﴾ 36 ﴿ और जब हम चखाते हैं लोगों को कुछ दया, तो वे उसपर इतराने लगते हैं और यदि पहुँचता है उन्हें कोई दुःख उनके करतूतों के कारण, तो वह सहसा निराश हो जाते हैं।

﴾ 37 ﴿ क्या उन्होंने नहीं देखा कि अल्लाह फैला देता है जीविका, जिसके लिए चाहता है और नापकर देता है? निश्चय इसमें बहुत-सी निशानियाँ हैं, उन लोगों के लिए, जो ईमान लाते हैं।

﴾ 38 ﴿ तो दो समीपवर्तियों को उनका अधिकार तथा निर्धनों और यात्रियों को। ये उत्तम है उन लोगों के लिए, जो चाहते हों अल्लाह की प्रसन्नता और वही सफल होने वाले हैं।

﴾ 39 ﴿ और जो तुम व्याज देते हो, ताकि अधिक हो जाये लोगों के धनों[1] में मिलकर, तो वह अधिक नहीं होता अल्लाह के यहाँ तथा तुम जो ज़कात देते हो, चाहते हुए अल्लाह की प्रसन्नता, तो वही लोग सफल होने वाले हैं।
1. इस आयत में सामाजिक अधिकारों की ओर ध्यान दिलाया गया है कि जब सब कुछ अल्लाह ही का दिया हुआ है तो तुम्हें अल्लाह की प्रसन्नता के लिये सब का अधिकार देना चाहिये। ह़दीस में है कि जो व्याज खाता-खिलाता है और उसे लिखता तथा उस पर गवाही देता है उस पर नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने धिक्कार किया है।

﴾ 40 ﴿ अल्लाह ही है, जिसने उत्पन्न किया है तुम्हें, फिर तुम्हें जीविका प्रदान की, फिर तुम्हें मारेगा, फिर जीवित करेगा, तो क्या तुम्हारे साझियों में से कोई है, जो इसमें से कुछ कर सके? वह पवित्र है और उच्च है, उनके साझी बनाने से।
1. इस में फिर एकेश्वरवाद का वर्णन तथा शिर्क का खण्डन किया है।

﴾ 41 ﴿ फैल गया उपद्रव जल तथा[1] थल में लोगों के करतूतों के कारण, ताकि वह चखाये उन्हें उनका कुछ कर्म, संभवतः वे रूक जायें।
2. आयत में बताया गया है कि इस विश्व में जो उपद्रव तथा अत्याचार हो रहा है यह सब शिर्क के कारण हो रहा है। जब लोगों ने एकेश्वाद को छोड़ कर शिर्क अपना लिया तो अत्याचार और उपद्रव होने लगा। क्यों कि न एक अल्लाह का भय रह गया और न उस के नियमों का पालन।

﴾ 42 ﴿ आप कह दें कि चलो-फिरो धरती में, फिर देखो कि कैसा रहा उनका अन्त, जो इनसे पहले थे। उनमें अधिक्तर मुश्रिक थे।

﴾ 43 ﴿ अतः, आप सीधा रखें अपना मुख सत्धर्म की दिशा में, इससे पहले कि आ जाये वह दिन, जिसे फिरना नहीं है अल्लाह की ओर से, उस दिन लोग अलग-अलग हो[1] जायेंगे।
1. अर्थात ईमान वाले और काफ़िर।

﴾ 44 ﴿ जिसने कुफ़्र किया, तो उसीपर उसका कुफ़्र है और जिसने सदाचार किया, तो वे अपने ही लिए (सफलता का मार्ग) बना रहे हैं।

﴾ 45 ﴿ ताकि अल्लाह बदला दे उन्हें, जो ईमान लाये तथा सदाचार किये, अपने अनुग्रह से। निश्चय वह प्रेम नहीं करता काफ़िरों से।

﴾ 46 ﴿ और उसकी निशानियों में से है कि भेजता है वायु को शुभ सूचना देने के लिए और ताकि चखाये तुम्हें अपनी दया (वर्षा) में से और ताकि नाव चले उसके आदेश से और ताकि तुम खोजो उसकी जीविका और ताकि तुम कृतज्ञ बनो।

﴾ 47 ﴿ और हमने भेजा आपसे पहले रसूलों को, उनकी जातियों की ओर। तो वे लाये उनके पास खुली निशानियाँ, अन्ततः, हमने बदला ले लिया उनसे, जिन्होंने अपराध किया और अनिवार्य था हमपर ईमान वालों की सहायता[1] करना।
1. आयत में नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) तथा आप के अनुयायियों को सांत्वना दी जा रही है।

﴾ 48 ﴿ अल्लाह ही है, जो वायुओं को भेजता है, फिर वह बादल उठाती हैं, फिर वह उसे फैलाता है आकाश में, जैसे चाहता है और उसे घंघोर बना देता है। तो तुम देखते हो बूंदों को निकलते उसके बीच से, फिर जब उसे पहुँचाता है जिसे चाहता है, अपने भक्तों में से, तो सहसा वे प्रफुल्ल हो जाते हें।

﴾ 49 ﴿ यद्यपि वे थे इससे पहले कि उनपर उतारी जाये, अति निराश।

﴾ 50 ﴿ तो देखो अल्लाह की दया के लक्षणों को, वह कैसे जीवित करता है धरती को, उसके मरण के पश्चात्, निश्चय वही जीवित करने वाला है मुर्दों को तथा वह सब कुछ कर सकता है।

﴾ 51 ﴿ और यदि हम भेज दें उग्र वायु, फिर वे देख लें उसे (खेती को) पीली, तो इसके पश्चात् कुफ्र करने लगते हैं।

﴾ 52 ﴿ तो (हे नबी!) आप नहीं सुना सकेंगे मुर्दों[1] को और नहीं सुना सकेंगे बहरों को पुकार, जब वे भाग रहे हों, पीठ फेरकर।
1. अर्थात जिन की अन्तरात्मा मर चुकी हो और सत्य सुनने के लिये तैयार न हों।

﴾ 53 ﴿ तथा नहीं हैं आप मार्ग दर्शाने वाले अंधों को उनके कुपथ से, आप सुना सकेंगे उन्हींको, जो ईमान लाते हैं हमारी आयतों पर, फिर वही मुस्लिम हैं।

﴾ 54 ﴿ अल्लाह ही है, जिसने उत्पन्न किया तुम्हें निर्बल दशा से, फिर प्रदान किया निर्बलता के पश्चात् बल, फिर कर दिया बल के पश्चात् निर्बल तथा बूढ़ा,[1] वह उत्पन्न करता है, जो चाहता है और वही सर्वज्ञ, सब सामर्थ्य रखने वाला है।
1. अर्थात एक व्यक्ति जन्म से मरण तक अल्लाह के सामर्थ्य के अधीन रहता है फिर उस की वंदना में उस के अधीन होने और उस के पुनः पैदा कर देने के सामर्थ्य को अस्वीकार क्यों करते है?

﴾ 55 ﴿ और जिस दिन व्याप्त होगी प्रलय, तो शपथ लेंगे अपराधी कि वे नहीं रहे क्षणभर[1] के सिवा और इसी प्रकार, वे बहकते रहे।
1. अर्थात संसार में।

﴾ 56 ﴿ तथा कहेंगे, जो ज्ञान दिये गये तथा ईमान कि तुम रहे हो अल्लाह के लेख में प्रलय के दिन तक, तो अब ये प्रलय का दिन है और परन्तु, तुम विश्वास नहीं रखते थे।

﴾ 57 ﴿ तो उस दिन, नहीं काम देगा अत्याचारियों को उनका तर्क और न उनसे क्षमायाचना करयी जायेगी।

﴾ 58 ﴿ और हमने वर्णन कर दिया है लोगों के लिए इस क़ुर्आन में प्रत्येक उदाहरण का और यदि आप ले आयें उनके पास कोई निशानी, तो भी अवश्य कह देंगे, जो काफ़िर हो गये कि तुम तो केवल झूठ बनाते हो।

﴾ 59 ﴿ इसी प्रकार, मुहर लगा देता है अल्लाह उनके दिलों पर, जो समझ नहीं रखते।

﴾ 60 ﴿ तो आप सहन करें, वास्तव में, अल्लाह का वचन सत्य है और कदापि वो आप[1] को हल्का न समझें, जो विश्वास नहीं रखते।
1. अन्तिम आयत में आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) को धैर्य तथा साहस रखने का आदेश दिया गया है। और अल्लाह ने जो विजय देने तथा सहायता करने का वचन दिया है उस के पूरा होने और निराश न होने के लिये कहा जा रहा है।

कुरान - कुरान की मान्यताएँ (Quran in Hindi)

इस आरंभिक विचार के बाद यह समझ लें कि क़ुरान के अनुसार इस धरती पर मनुष्य की क्या स्थिति है?‎ अल्लाह ने इस धरती पर मनुष्य को अपना प...

Powered by Blogger.